छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है जैतखाम को बनाने में सात खंभों का उपयोग किया गया है. जैतखाम के अंदर एक विशाल हॉल है. इसके अलावा ऊपर चढ़ते हुए जैतखाम की गोलाई से गिरौदपुरी का नजारा भव्य नजर आता है
जैतखाम
छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है| यह स्तंभ दिल्ली की कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचा है. यह स्तंभ कई किलोमीटर दूर से ही दिखने लगता है. सफेद रंग के इस स्तंभ का वास्तुशिल्प इतना शानदार है कि दर्शकों की आंखें ठिठक जाती हैं. दिन ढलते ही दूधिया रोशनी में जैतखाम की भव्यता देखते ही बनती है|
गिरौदपुरी सतनामी समाज के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यहां हर साल फागुन पंचमी से तीन दिन का मेला लगता है, जिसमें पांच लाख से भी ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं. हालांकि सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है|
गिरौदपुरी में बाबा गुरु घासीदास के प्राचीन मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित जैतखाम के मुख्य प्रवेशद्वार की सीढ़ियों से उतरते ही ताजमहल की तर्ज पर विशाल वॉटर बॉडी बनाई गई है. रात में इस पूल के पानी में जैतखाम की परछाई भी दिखाई देती है. परछाई से ऐसा लगता है कि एक ही स्थान पर दो जैतखाम खड़े हैं. जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर (243 फीट) है, जबकि कुतुब मीनार 72.5 मीटर (237 फीट) ऊंची है|
जैतखाम को बनाने में सात खंभों का उपयोग किया गया है. जैतखाम के अंदर एक विशाल हॉल है. इसके अलावा ऊपर चढ़ते हुए जैतखाम की गोलाई से गिरौदपुरी का नजारा भव्य नजर आता है. पहाड़ी भी ऐसे लगती है मानो उन्हें हाथों से छुआ जा सकता है|
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, मानवता के पुजारी संत गुरु घासीदास जी का जन्म गिरौदपुरी में 18 दिसंबर सन 1756 को हुआ था. युवा अवस्था में उन्होंने इसी गांव से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों से परिपूर्ण छाता-पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध पर्वत पर कठोर तपस्या की थी और गिरौदपुरी पहुंचकर लोगों को सत्य, अहिंसा, दया, करुणा और परोपकार के उपदेशों के साथ मानवता का संदेश दिया था|
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