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खुटाघाट बांध,बिलासपुर (Khuta Ghat,Bilaspur)

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खुटाघाट बांध,बिलासपुर (Khuta Ghat,Bilaspur) खुटाघाट बांध का परिचय: छत्तीसगढ़ के पूरे क्षेत्र में धान का कटोरा 'या' राइस ऑफ बाउल इसका क्रेडिट छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले को दिया जाता है। इस जिले की अनूठी विशेषताओं में चावल, कोसा उद्योग और अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कोर्स की गुणवत्ता परिष्कृत के कारण यह बहोत ही प्रसिद्ध हैं। 400 साल की उम्र के आसपास, बिलासपुर के शहर से देश भर में अपनी आकर्षक पर्यटन स्थलों और स्मारकों और पवित्र स्थानों का भंडार शामिल हैं, जो यात्रियों को आकर्षित बहोत करती है। इनमें से भारत के छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले मे खुटाघाट बांध व्यापक रूप से अपनी सुंदरता और आगंतुकों के लिए उत्कृष्ट मनोरंजन के अवसरों की पेशकश के लिए प्रशंसित है।  खुटाघाट बांध का विवरण: बिलासपुर खुटाघाट बांध हर पर्यटक के साथ प्रसिद्ध है। यह रतनपुर खंडहर के लिए मशहूर शहर से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। खुटाघाट बांध खरून नदी के शांत किनारे पर एक बांध का निर्माण किया है और पूरे क्षेत्र की सिंचाई की प्रक्रिया में मदद करता है।  अगर आप खुटाघाट बांध का भ्रमण करते है तो आप इसके बेदा...

लक्ष्मणेश्वर महादेव – खरौद (Laxmaneshwar Mandir,Kharod)

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छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण छत्तीसगढ़ की काशी कहा जाने वाला खरौद नगर में एक दुर्लभ शिवलिंग स्थापित है ! जिसे लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है ! लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्तिथ है। कहते है की भगवन राम ने यहाँ पर खर व दूषण का वध किया था इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा। खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। रामायणकालीन इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसमें एक लाख छिद्र हैं ! कहते हैं कि इनमें से एक छिद्र पाताल का रास्ता है ! लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात ‘लक्ष्मणेश्वर महादेव’ की स्थापना की थी ! रतनपुर के राजा खड्गदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था ! विद्वानों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल छठी शताब्दी माना गया है...

जांजगीर-चांपा जिले के दलहा पहाड़ पर सूर्यकुंड का पानी पीने जुटते हैं हजारों लोग।

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जांजगीर-चांपा जिले के दलहा पहाड़ पर सूर्यकुंड का पानी पीने जुटते हैं हजारों लोग। जांजगीर-चांपा जिले में अकलतरा के पास है दलहा पहाड़। मुनि का आश्रम और सूर्यकुंड प्रसिद्ध है यहां। साल के एक दिन नागपंचमी पर इस कुंड की महत्ता सबसे ज्यादा होती है। इसका पानी पीने हजारों लोग जंगलों, पर्वतों और पत्थरों से भरे रास्ते पैदल आते हैं। लंबा रास्ता तय करने के बाद चार किलोमीटर की सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहां के पंडित उमाशंकर गुरुद्वान के मुताबिक, ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन कुंड का पानी पीने से लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। लोगों में किसी भी प्रकार की बीमारी हो, यहां का पानी पीने से चली जाती है। इसलिए हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु भक्त नागपंचमी के दिन इस कुंड का पानी पीने कई किलोमीटर दूर से पैदल चलकर आते हैं। कटीले और पथरीली इलाकों में रहता है जान का खतरा यहां घने जंगल के अंदर से जब श्रद्धालु आते हैं तो उन्हें कटीले पौधों और पथरीली पहाड़ों से होकर गुजरना पड़ता है। कितने श्रद्धालुओं के पैरों में कांटे गड़ते हैं, इस जंगल में कीड़े और सांप भी रहते हैं। लेकिन श्रद्धालु भक्त बगैर डरे ...

मिनीमाता (हस्देओ) बैंगो बांध, कोरबा, छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में हस्देओ बैंगो बांध का निर्माण हस्देओ नदी पर किया गया है और छत्तीसगढ़ में पर्यटन के लिए यह बांध प्रसिद्ध है। हस्देओ बैंगो बांध, आकर्षक पहाड़ियों के बीच स्थित, एक आदर्श पिकनिक स्थान है। बांध लगभग 555 मीटर लंबा है और इसमें 11 गेट हैं, जिनमें से 10 परिचालन हैं। हस्देओ बैंगो बांध, मिनीमाता (हस्देओ) बैंगो बांध के रूप में जाना जाता है। हस्देओ बैंगो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, हस्देओ नदी के बाएं किनारे गांव माचडोली, कटघोरा, कोरबा में स्थित है। यह परियोजना बहुउद्देशीय उपयोग के लिए डिज़ाइन की गई है। योजना आयोग ने मार्च 1984 में योजना को मंजूरी दी थी। हस्देओ बैंगो बांध एल्यूमिनियम प्लांट, एसईसीएल, एनटीपीसी, सीएसपीजीसीएल, कोरबा टाउन और अन्य औद्योगिक इकाइयों की पानी की आवश्यकता को पूरा करती है। यह कोरबा जिले से 70 किमी दूर स्थित है। इसमें 6,730 वर्ग किमी का एक जलग्रहण क्षेत्र है।

छत्तीसगढ़ के भुइयां महान गिरौदपुरी हे पावन धाम

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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है जैतखाम को बनाने में सात खंभों का उपयोग किया गया है. जैतखाम के अंदर एक विशाल हॉल है. इसके अलावा ऊपर चढ़ते हुए जैतखाम की गोलाई से गिरौदपुरी का नजारा भव्य नजर आता है जैतखाम छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है| यह स्तंभ दिल्ली की कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचा है. यह स्तंभ कई किलोमीटर दूर से ही दिखने लगता है. सफेद रंग के इस स्तंभ का वास्तुशिल्प इतना शानदार है कि दर्शकों की आंखें ठिठक जाती हैं. दिन ढलते ही दूधिया रोशनी में जैतखाम की भव्यता देखते ही बनती है| गिरौदपुरी सतनामी समाज के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यहां हर साल फागुन पंचमी से तीन दिन का मेला लगता है, जिसमें पांच लाख से भी ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं. हालांकि सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है| गिरौदपुरी में बाबा गुरु घासीदास के...

महामाया मंदिर,रतनपुर,बिलासपुर

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महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में रतनपुर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर लगभग १२वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। मंदिर के अंदर महामाया माता का मंदिर है। वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मां महमाया देवी मंदिर के लिए नवरात्रों में मुख्य उत्सव, विशेष पूजा-अर्चना एवं देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है। महामाया शक्तिपीठ छत्तीसगढ़ स्थित रतनपुर का महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में देवी माता के अनेक सिद्ध मंदिर हैं, जिनमें माता के 51 शक्तिपीठ सदा से ही श्रद्धालुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व के रहे हैं। इन्हीं में से एक है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रतनपुर स्थित मां महामाया देवी मंदिर कहा जाता है। देवी महामाया का पहला अभिषेक और पूजा-अर्चना कलिंग के महाराज रत्रदेव ने 1050 में रतनपुर में की थी। आज भी यहां उनके किलों के अवशेष देखे जा सकते हैं। ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि...

शिवरीनारायण – छत्तीसगढ़ – यहाँ पर है माता शबरी का आश्रम, जहा पर हुई थी भगवान राम से मुलाक़ात

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रामायण में एक प्रसंग आता है  जब देवी सीता को ढूंढते हुए भगवान राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में भटकते हुए  माता शबरी के आश्रम में पहुंच जाते हैं। जहां शबरी उन्हें अपने जूठे बेर खिलाती है जिसे राम बड़े प्रेम से खा लेते हैं। माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में शिवरीनारायण मंदिर परिसर में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह मंदिर व आश्रम प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरे हुए है। शबरी माता का आश्रम शिवरी नारायण मंदिर के कारण ही यह स्थान छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है | मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की प्रतिमा स्थापित रही थी, परंतु बाद में इस प्रतिमा को जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था । इसी आस्था के फलस्वरूप माना जाता है कि आज भी भगवान जगन्नाथ जी यहां पर आते हैं | शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में आता है। यह बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान को पहले माता शबरी के नाम पर शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीना...